मंगलयान और चीन की ‘अंतरिक्ष सेना’
शैलेश कुमार, नई दिल्ली
22 सितंबर 2014
भारत का मार्स ऑर्बिटर मिशन Photo Curtsy: ISRO |
स्पेस में सफलता की इस सीढ़ी के आखिरी पायदान पर जब भारत खड़ा है तो उसे एक चिंता भी होनी चाहिए। चिंता अपने पडोसी देश चीन से। क्योंकि चीन के राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग जब भारत आये तभी चीन की पियुप्ल्स लिबरेशन आर्मी ने पहले भारत के देमचोक और फिर चुमार सेक्टर में घुसपैठ की। यही नहीं चीनी सेना ने दोनों जगहों पर अपने टेंट लगा लिए। चुमार में तो दोनों देशों के सैनिक भारतीये जमीन पर गुथ्थमगुत्था भी हो गए। चीन की आर्मी अभी भी भरतीय सीमा में कम से कम दो किलोमीटर अन्दर है। दोनों देशों के बीच बॉर्डर पर ये गतिरोध अभी कुछ समय और कायम रह सकता है। लेकिन भारत के लिए समझने वाली सबसे बड़ी बात ये है की ये सब कुछ हुआ चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग के आदेश पर, क्योंकि वो चीन की सेन्ट्रल मिलिट्री कमीशन यानी सीएमसी के चेयरमैन हैं और चीनी सेना उन्ही से आदेश लेती है। भारत के लिए उससे भी ज्यादा चौकाने वाली बात ये है की क्सी जिनपिंग ने हिंदुस्तान आने से महज़ कुछ दिन पहले ही पियुप्ल्स लिबरेशन आर्मी को एक नयी ‘एयरोस्पेस फ़ोर्स’ स्थापित करने के निर्देश दिए थे। गैर आधिकारिक सूचनाओं के मुताबिक़ चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग ने पीएलए अधिकारिओं से आग्रह किया था की वो जल्द से जल्द अपनी वायु और अंतरिक्ष कार्यक्रमों का समाकलन करें और उनकी रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं में तेजी लायें।
चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ Photo Curtsy: PIB, India |
चीन की ये तथाकथित ‘एयरोस्पेस फ़ोर्स’ अंतरिक्ष में सैन्य अभियानों के लिए चीनी मिलिट्री की पांचवी शाखा होगी। चीन में पहले से ही ओवेर्ट और कोवेर्ट ऑपरेशन के लिए पीएलए आर्मी, पीएलए नेवी, पीएलए एयरफोर्स और सेकंड आर्टीलरी मौजूद हैं। सेकंड आर्टीलरी के जिम्मे ही चीन का परमाणु जखीरा और खतरनाक बैलिस्टिक मिसाइल्स हैं। अब चीन की ‘एयरोस्पेस फ़ोर्स’ एक नया पांचवा लड़ाकू दस्ता होगा। हालाँकि चीन खुले तौर पर कहता रहा है की वो अंतरिक्ष का इस्तेमाल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही करना चाहता है। लेकिन चीन की कथनी और करनी में जमीन- आसमान का अंतर है। अन्दर ही अन्दर चीन धरती और अंतरिक्ष पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए अंतरिक्ष में न सिर्फ हथियारों का जमावड़ा कर रहा है, बल्कि अंतरिक्ष में सैन्य अभियानों के सफल अंजाम की पूरी तैयारी भी कर चुका है।
अंतरिक्ष में सैन्य अभियानों के लिए चीन की 'एयरोस्पेस फ़ोर्स' Photo Curtsy: Chinese Military Site |
अंतरिक्ष के सैन्यकरण के लिए चीन द्वारा चलाये जा रहे गुप्त अभियानों की जानकारी दुनिया को पहली बार तब हुई जब चीन के स्पेस और मिलिट्री प्रोग्राम के विशेषज्ञ डॉ ज्हुंग्ग फेंग्गन ने बीजिंग यूथ डेली को सन 2002 में एक इंटरव्यू दिया। इस इंटरव्यू में डॉ फेंग्गन ने इशारा किया था की चीन एक ‘स्पेस कॉम्बैट वेपन प्लेटफार्म’ तैयार कर रहा है। चीन का ये ‘स्पेस बॉम्बर’, स्वर्गीय डॉ फेंग्गन के मुताबिक, दुश्मन के राडार पर नज़र न आने वाला ‘स्टील्थ’ और सटीक निशाने वाली ‘प्रिसिशन स्ट्राइक’ तकनीक पर आधारित ऐसा हाइपरसोनिक विमान यानि ध्वनि की गति से 8 से 12 गुना तेजी से चलने वाला विमान था, जो स्पेस और प्रथ्वी के उपरी वायुमंडल में आसानी से आ जा सकता था। दिसम्बर 2007 में चीन के क्सिओन एच -6 बॉम्बर विमान के धड से चिपके हुए ‘शेन्लोंग’ विमान की तस्वीरें दुनिया के सामने आ चुकी थीं।‘शेन्लोंग’ विमान आकार में अमेरिका द्वारा विकसित किये जा रहे X-37 B लड़ाकू विमान से बहुत छोटा है, लेकिन महज़ एक घंटे के अन्दर अमेरिका पहुँच कर अन्दर तक अमेरिका के किसी भी शहर में मार कर सकता है।
शेन्लोंग विकास की प्रारंभिक अवस्था में क्सिआन-6 विमान के धड से जुदा हुआ Photo Curtsy: Chinese Website |
डॉ फेंग्गन के इस खुलासे से चीन का चेहरा पहली बार दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका था। तब से लेकर अब तक चीन ने अंतरिक्ष में लंबी कुलांचे भरते हुए अपनी वायु और समुद्री सामरिक क्षमता पर नाज़ करने वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़, एयरोस्पेस प्लेन, हाइपरसोनिक हथियारों, एंटी सॅटॅलाइट क्षमताओं, एंटी एंटी- सॅटॅलाइट सिस्टम्स, सॅटॅलाइट ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, सब ऑर्बिटल वेपन, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कण्ट्रोल सिस्टम, मानवरहित ड्रोन जैसी न जाने कितनी मारक क्षमताएं हासिल कर ली हैं। और अब सन 2022 तक चीन अंतरिक्ष में अपने ‘एयरोस्पेस बोम्बर्स’ बेड़े के लिए एक बड़ा स्पेस स्टेशन बना चुका होगा।
चीन का एंटी सॅटॅलाइट वेपन Photo Curtsy: Wikipedia |
इस दौरान चीन ने अंतरिक्ष में युद्ध की तैयारी का एक नमूना सन 2007 में फिर दिखाया। एक बैलिस्टिक मिसाइल से अंतरिक्ष में काइनेटिक किल व्हीकल दाग कर अपनी ही एक पुरानी सॅटॅलाइट को ध्वस्त कर दिया। स्पेस वार की बुनियाद रखने वाली चीन की इस हरकत से दुनिया सकते में थी। लेकिन चीन महज़ इस लिए दबाव में था कि उसके इस कारनामे से अंतरिक्ष में सॅटॅलाइट के हज़ारों टुकड़ों का कचरा फ़ैल गया था और दुनिया में उसकी बहुत आलोचना हो रही थी। साथ ही साथ चीन को खुद भी अंतरिक्ष में इस कचरे से खतरा पैदा हो गया था।
अब चीन के सामने स्पेस गार्बेज की शक्ल में एक नयी चुनौती थी। पांच साल के अन्दर चीन ने इस चुनौती से भी पार पा ली। पिछले साल ही जुलाई में चीन ने लॉन्ग मार्च 4 C राकेट से चुंग्जिन-3, शियान-7, और शिजियन-15 नाम की तीन सॅटॅलाइट लांच की थीं। ये रैकेट पूर्व- मध्य चीन के ताईयुआन सॅटॅलाइट लांच सेंटर से दागा गया था। इनमे से शियान -7 नाम की सॅटॅलाइट ने अचानक नाटकीय रूप से अपनी कक्षा यानी अंतरिक्ष में अपना ऑर्बिट बदलना शुरू कर दिया। जल्द ही ये 2005 में लांच हुई शिजियन-7 सॅटॅलाइट की कक्षा में आ गयी और उस पर अपनी रोबोटिक आर्म से हमला कर दिया। चीन का तर्क था की अंतरिक्ष में कचरे को इकठ्ठा करने के लिए रोबोटिक आर्म सॅटॅलाइट में फिट की गयी थी।
दर्शाने हेतु: चीन की एंटी सॅटॅलाइट तकनीक में रोबोटिक आर्म का प्रयोग Photo Curtsy: NASA |
लेकिन अंतरिक्ष विशेषज्ञों का मानना था की चीन इस एंटी सॅटॅलाइट तकनीक से सॅटॅलाइट पर भौतिक रूप में हमला कर सकता है और गुप्त रूप से इलेक्ट्रॉनिक ईवेस्ड्रोपिंग यानी सूचनाओं को सुन भी सकता है। यही नहीं चीन दुश्मन देशो की सॅटॅलाइट का अपहरण तक कर करने की क़ाबलियत जुटा चुका है। चीन की एंटी सॅटॅलाइट तकनीक अंतरिक्ष में युद्ध की तैयारी का नमूना भर है। आज हर देश अमूमन हर छोटे बड़े काम के लिए सॅटॅलाइट पर निर्भर है चाहें वो मौसम से जुडी जानकारी हो, रिमोट सेंसिंग, हवाई यातायात, मोबाइल फ़ोन कम्युनिकेशन या फिर टेलीविज़न ट्रांसमिशन। चीन अंतरिक्ष में मौजूद इन सॅटॅलाइट पर कभी भी हमला करने की मारक क्षमता रखता है।
WU-14 |
बीते दिनों में चीन की चेंगदू एयरक्राफ्ट कारपोरेशन एक ऐसे स्क्रेम्जेट हाइपरसोनिक यानी अतिपराध्वनिक मिसाइल का निर्माण कर रहा है जो ध्वनि से 12 गुना अधिक यानि 14,700 किलोमीटर प्रति घंटा तक की गति से चलती हो। ये अल्ट्रा हाई स्पीड हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल WU-14, चीन द्वारा ही तैयार की गयी इंटरकांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, पर माउंट किया गया है। WU -14 ग्लाइड व्हीकल धरती से 62 किलोमीटर ऊपर स्पेस में अपने टारगेट की ओर बढता है और अचानक दुनिया के किसी भी कोने में लांच के एक घंटे के अन्दर दुश्मन पर परमाणु हमला कर सकता है। ये अमेरिका के सबसे सुरक्षित समझे जाने एयर मिसाइल डिफेन्स सिस्टम को भी धता देकर सटीक हमला करने की क्षमता रखता है।
सब ऑर्बिटल वेपन प्लेटफार्म Photo Curtsy: Amazon |
चीनी राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग के भारत के भारत दौरे से पहले देमचोक में चीन की घुसपैठ Photo: Shailesh Kumar |
चीन की स्पेस पॉवर बहुत तेजी से बढ़ रही है। लेकिन धरती पर चीन के सामने कई ऐसे पॉवर सेंटर हैं जिनके आगे चीन लाचार नज़र आता है। चीन का न सिर्फ इंडिया से, बल्कि अपने कई पडोसी मुल्कों से सीमा विवाद है। इन विवादों को हल करने के लिए चीन की रणनीति है ‘अग्रेस्सिवे पोसचुरिंग’ यानी आक्रामक दिखावा। इसी कड़ी में भारत यात्रा से वापस जाने के बाद राष्ट्रपति क्सी जिनपिंग ने पीएलए से कहा है की वो क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहे।
चीनी नागरिको की आड़ में भारतीये सीमा में पीएलए टेंट Photo Curtsy: Shailesh Kumar |
चीन दुनिया की सबसे तेजी से बढती अर्थव्यवस्था है। ऐसे में युद्ध करना उसके हक में नहीं। क्योंकि आज की परिस्तिथियों में युद्ध एक अकेले देश से नहीं किया जा सकता। और अगर कई पॉवर सेंटर इस युद्ध का हिस्सा होंगे तो पारंपरिक युद्ध में चीन को हर तरफ से नुक्सान हो सकता है। इसीलिये चीन की रणनीति है बिना खून बहाए एक एक इंच आगे बढ़ो और साम्राज्य का विस्तार करो। और युद्ध की नौबत आये तो अंतरिक्ष से वार करो। ऐसे में भारत में नई मोदी सरकार के सामने चीन एक बार फिर चुनौती है क्योंकि भारत अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ और सैन्यकरण के पूरी तरह खिलाफ़ है। मतलब भारत ने यदि अपनी स्पेस पालिसी नहीं बदली तो चीन से इस मोर्चे पर भी मात मिल सकती है।
(Author can be contacted at- email: skumar.news@gmail.com; twitter: @kalyugikalki)
Reviewed by Unknown
on
7:54:00 PM
Rating:
No comments: